Guru Granth Sahib Translation Project

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ਜਿਨਿ ਦਿਨੁ ਕਰਿ ਕੈ ਕੀਤੀ ਰਾਤਿ ॥ जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥ जिस ने दिन बनाकर फिर रात की रचना की है।
ਖਸਮੁ ਵਿਸਾਰਹਿ ਤੇ ਕਮਜਾਤਿ ॥ खसमु विसारहि ते कमजाति ॥ जो लोग ऐसे गुरु-परमेश्वर को भूल जाते हैं वे दुःखी और तुच्छ होते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਵੈ ਬਾਝੁ ਸਨਾਤਿ ॥੪॥੩॥ नानक नावै बाझु सनाति ॥४॥३॥ गुरु नानक जी कहते हैं कि परमात्मा के नाम-सिमरन के बिना मनुष्य संकीर्ण जाति का होता है। ॥ ४॥ ३॥
ਰਾਗੁ ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ रागु गूजरी महला ४ ॥ राग गुजरी, चतुर्थ गुरु: ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਜਨ ਸਤਿਗੁਰ ਸਤ ਪੁਰਖਾ ਹਉ ਬਿਨਉ ਕਰਉ ਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥ हरि के जन सतिगुर सतपुरखा बिनउ करउ गुर पासि ॥ हे परमात्मा स्वरूप, सतगुरु, सत् पुरुष जी ! मेरी आप से यही प्रार्थना है कि
ਹਮ ਕੀਰੇ ਕਿਰਮ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਕਰਿ ਦਇਆ ਨਾਮੁ ਪਰਗਾਸਿ ॥੧॥ हम कीरे किरम सतिगुर सरणाई करि दइआ नामु परगासि ॥१॥ मैं अति सूक्ष्म कृमियों के समान जीव हूँ, सो हे सतगुरु जी ! मैं आपकी शरण में उपस्थित हूँ, कृपा करके मेरे अंत:करण में प्रभु-नाम का प्रकाश कर दो ॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮੀਤ ਗੁਰਦੇਵ ਮੋ ਕਉ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਪਰਗਾਸਿ ॥ मेरे मीत गुरदेव मो कउ राम नामु परगासि ॥ हे मेरे मित्र गुरुदेव ! मुझे राम के नाम का प्रकाश प्रदान करो।
ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਾਨ ਸਖਾਈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਹਮਰੀ ਰਹਰਾਸਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु उपदेश के अनुसार जो परमात्मा का नाम सिमरन करता है वही मेरे प्राणों का सहायक है, परमेश्वर की महिमा कथन करना ही मेरी रीति है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਜਨ ਕੇ ਵਡਭਾਗ ਵਡੇਰੇ ਜਿਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਰਧਾ ਹਰਿ ਪਿਆਸ ॥ हरि जन के वड भाग वडेरे जिन हरि हरि सरधा हरि पिआस ॥ हे सतगुरु जी ! आपकी कृपा से मैं जानता हूँ कि जिन की प्रभु-नाम में निष्ठा है, और उसको जपने की तृष्णा है उन हरि-भक्तों का सौभाग्य है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸਹਿ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਗੁਣ ਪਰਗਾਸਿ ॥੨॥ हरि हरि नामु मिलै त्रिपतासहि मिलि संगति गुण परगासि ॥२॥ क्योंकि उस हरि का हरि-नाम प्राप्त होने से ही उसके भक्तों को संतुष्टि प्राप्त होती है तथा संतों की संगत मिलने से उनके हृदय में हरि के गुणों का ज्ञान रूपी प्रकाश l
ਜਿਨ੍ਹ੍ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਨਾਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ਤੇ ਭਾਗਹੀਣ ਜਮ ਪਾਸਿ ॥ जिन हरि हरि हरि रसु नामु न पाइआ ते भागहीण जम पासि ॥ जिन्होंने हरि के हरि हरि नाम रस का आस्वादन नहीं किया, अर्थात् जो प्राणी ईश्वर के नाम में लीन नहीं हुए, वे भाग्यहीन यमों के चंगुल में फँस जाते हैं।
ਜੋ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਿ ਸੰਗਤਿ ਨਹੀ ਆਏ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵੇ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਾਸਿ ॥੩॥ जो सतिगुर सरणि संगति नही आए ध्रिगु जीवे ध्रिगु जीवासि ॥३॥ जो सतगुरु की शरण में आकर सत्संगति प्राप्त नहीं करते उन विमुख व्यक्तियों के जीवन पर धिक्कार है और भविष्य में उनके जीने पर भी धिक्कार है॥ ३॥
ਜਿਨ ਹਰਿ ਜਨ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰਗਤਿ ਪਾਈ ਤਿਨ ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਿਆ ਲਿਖਾਸਿ ॥ जिन हरि जन सतिगुर संगति पाई तिन धुरि मसतकि लिखिआ लिखासि ॥ जिन हरि-भक्तों ने सतगुरु की संगति प्राप्त की है, उनके मस्तिष्क पर अकाल-पुरख द्वारा जन्म से पूर्व ही शुभ लेख लिखा होता है।
ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਸਤਸੰਗਤਿ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ਮਿਲਿ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਪਰਗਾਸਿ ॥੪॥੧॥ धनु धंनु सतसंगति जितु हरि रसु पाइआ मिलि जन नानक नामु परगासि ॥४॥४॥ सतगुरु जी का वचन है कि हे निरंकार ! धन्य है वह सत्संगति, जिस से हरि-रस प्राप्त होता है और प्रभु भक्तों को उसके नाम का ज्ञान-प्रकाश मिलता है। इसलिए हे सतगुरु जी ! मुझ पर तो अकाल-पुरुष के नाम की कृपा करो ॥ ४॥ ४॥
ਰਾਗੁ ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रागु गूजरी महला ५ ॥ राग गुजरी, पंचम गुरु
ਕਾਹੇ ਰੇ ਮਨ ਚਿਤਵਹਿ ਉਦਮੁ ਜਾ ਆਹਰਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਪਰਿਆ ॥ काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥ हे मन ! तू किसलिए सोचता है, जबकि समस्त सृष्टि के प्रबंध का उद्यम तो स्वयं ईश्वर पहले से ही कर रहे हैं।
ਸੈਲ ਪਥਰ ਮਹਿ ਜੰਤ ਉਪਾਏ ਤਾ ਕਾ ਰਿਜਕੁ ਆਗੈ ਕਰਿ ਧਰਿਆ ॥੧॥ सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥ चट्टानों एवं पत्थरों में जिन जीवों को निरंकार ने पैदा किया है, उनका भोजन भी उसने पहले ही तैयार कर रखा है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਾਧਉ ਜੀ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲੇ ਸੁ ਤਰਿਆ ॥ मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सु तरिआ ॥ हे निरंकार ! जो भी संतों की संगति में जाकर बैठता है वह भव-सागर से पार उतर गया
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਸੂਕੇ ਕਾਸਟ ਹਰਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ रहाउ ॥ उसने गुरु की कृपा से परमपद (मोक्ष) प्राप्त किया है और उसका हृदय मानो यूं हो गया जैसे कोई सूखी लकड़ी हरी हो जाती है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਨਨਿ ਪਿਤਾ ਲੋਕ ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ਕੋਇ ਨ ਕਿਸ ਕੀ ਧਰਿਆ ॥ जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥ जीवन में माता, पिता, पुत्र, पत्नी व अन्य सम्बन्धीजन में से कोई भी किसी जगह आश्रय नहीं होता।
ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਰਿਜਕੁ ਸੰਬਾਹੇ ਠਾਕੁਰੁ ਕਾਹੇ ਮਨ ਭਉ ਕਰਿਆ ॥੨॥ सिरि सिरि रिजकु स्मबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥२॥ प्रत्येक जीव को सृष्टि में पैदा करके निरंकार स्वयं अन्न-जल पहुँचाता है, फिर हे मन ! तू भय किसलिए करता है ? ॥ २॥
ਊਡੈ ਊਡਿ ਆਵੈ ਸੈ ਕੋਸਾ ਤਿਸੁ ਪਾਛੈ ਬਚਰੇ ਛਰਿਆ ॥ ऊडे ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥ राजहंस का समूह उड़ कर सैकड़ों मील दूर चला आता है और अपने बच्चों को वह पीछे (अपने घोंसले में ही) छोड़ आता है।
ਤਿਨ ਕਵਨੁ ਖਲਾਵੈ ਕਵਨੁ ਚੁਗਾਵੈ ਮਨ ਮਹਿ ਸਿਮਰਨੁ ਕਰਿਆ ॥੩॥ तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥ बताओ, उन्हें कौन भोजन कराता है? कौन उन्हें पेट भरना सिखाता है? राजहंस तो केवल उन्हें याद करता है; और फिर उड़कर उन्हें भोजन कराने लौट आता है।
ਸਭ ਨਿਧਾਨ ਦਸ ਅਸਟ ਸਿਧਾਨ ਠਾਕੁਰ ਕਰ ਤਲ ਧਰਿਆ ॥ सभि निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिआ ॥ समस्त नौ निधियाँ, अट्ठारह सिद्धियाँ निरंकार ने अपनी हथेली पर रखी हुई हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਬਲਿ ਬਲਿ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਰਿਆ ॥੪॥੧॥ जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥४॥५॥ हे नानक ! ऐसे अकाल-पुरुष पर मैं सदा-सर्वदा बलिहार जाता हूँ, असीम निरंकार का कोई पारावार व अंत नहीं है। ॥४॥५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ਸੋ ਪੁਰਖੁ रागु आसा महला ४ सो पुरखु राग आसा, चतुर्थ गुरु, सो पुरखः
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸੋ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹਰਿ ਅਗਮਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥ सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥ वह अकाल पुरख सृष्टि के समस्त जीवों में व्यापक है, फिर भी मायातीत है. अगम्य है तथा अनन्त है।
ਸਭਿ ਧਿਆਵਹਿ ਸਭਿ ਧਿਆਵਹਿ ਤੁਧੁ ਜੀ ਹਰਿ ਸਚੇ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ॥ सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा ॥ हे सत्यस्वरूप सृजनहार परमात्मा ! आपका ध्यान अतीत में भी सब करते थे, अब भी करते हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे।
ਸਭਿ ਜੀਅ ਤੁਮਾਰੇ ਜੀ ਤੂੰ ਜੀਆ ਕਾ ਦਾਤਾਰਾ ॥ सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥ सृष्टि के समस्त जीव आपकी ही रचना हैं और आप ही स्वयं जीवों के प्रतिभोग व मुक्ति दाता हो।
ਹਰਿ ਧਿਆਵਹੁ ਸੰਤਹੁ ਜੀ ਸਭਿ ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਣਹਾਰਾ ॥ हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥ हे भक्त जनो ! उस निरंकार का सिमरन करो जो समस्त दु:खों का नाश करके सुख प्रदान करते हैं।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਠਾਕੁਰੁ ਹਰਿ ਆਪੇ ਸੇਵਕੁ ਜੀ ਕਿਆ ਨਾਨਕ ਜੰਤ ਵਿਚਾਰਾ ॥੧॥ हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥ निरंकार स्वयं स्वामी व स्वयं ही सेवक है, सो हे नानक ! मुझ दीन जीव की क्या योग्यता है कि मैं उस अकथनीय प्रभु का वर्णन कर सकूं ॥ १॥


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