Guru Granth Sahib Translation Project

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ਤੂੰ ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਜੀ ਹਰਿ ਏਕੋ ਪੁਰਖੁ ਸਮਾਣਾ ॥ तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥ सर्वव्यापक निरंकार समस्त प्राणियों के हृदय में अभेद समा रहा है।
ਇਕਿ ਦਾਤੇ ਇਕਿ ਭੇਖਾਰੀ ਜੀ ਸਭਿ ਤੇਰੇ ਚੋਜ ਵਿਡਾਣਾ ॥ इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडाणा ॥ संसार में कोई दाता बना हुआ है, कोई भिक्षु का रूप लिया हुआ है, हे परमात्मा ! यह सब आपकी ही आश्चर्यजनक लीला है।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਦਾਤਾ ਆਪੇ ਭੁਗਤਾ ਜੀ ਹਉ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣਾ ॥ तूं आपे दाता आपे भुगता जी हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥ आप स्वयं ही देने वाले हो और स्वयं ही भोक्ता हो, आपके बिना मैं किसी अन्य को नहीं जानता।
ਤੂੰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਬੇਅੰਤੁ ਬੇਅੰਤੁ ਜੀ ਤੇਰੇ ਕਿਆ ਗੁਣ ਆਖਿ ਵਖਾਣਾ ॥ तूं पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥ आप पारब्रह्म हो, आप तीनों लोकों में अंतरहित हो, मैं आपके गुणों का मुख से कैसे कथन करूं।
ਜੋ ਸੇਵਹਿ ਜੋ ਸੇਵਹਿ ਤੁਧੁ ਜੀ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਤਿਨ ਕੁਰਬਾਣਾ ॥੨॥ जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबाणा ॥२॥ सतगुरु जी कथन करते हैं कि जो जीव आप का अंतर्मन से सिमरन करते हैं, सेवा-भाव से समर्पित होते हैं उन पर मैं न्यौछावर होता हूँ॥ २॥
ਹਰਿ ਧਿਆਵਹਿ ਹਰਿ ਧਿਆਵਹਿ ਤੁਧੁ ਜੀ ਸੇ ਜਨ ਜੁਗ ਮਹਿ ਸੁਖਵਾਸੀ ॥ हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी || हे निरंकार ! जो आपका मन व वाणी द्वारा ध्यान करते हैं, वो मानव-जीव युगों-युगों तक सुखों का भोग करते हैं।
ਸੇ ਮੁਕਤੁ ਸੇ ਮੁਕਤੁ ਭਏ ਜਿਨ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਜੀ ਤਿਨ ਤੂਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸੀ ॥ से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआ जी तिन तूटी जम की फासी ॥ जिन्होंने आपका सिमरन किया है वे इस संसार से मुक्ति प्राप्त करते हैं और उनका यम-पाश टूट जाता है।
ਜਿਨ ਨਿਰਭਉ ਜਿਨ ਹਰਿ ਨਿਰਭਉ ਧਿਆਇਆ ਜੀ ਤਿਨ ਕਾ ਭਉ ਸਭੁ ਗਵਾਸੀ ॥ जिन निरभउ जिन हरि निरभउ धिआइआ जी तिन का भउ सभु गवासी ॥ जिन्होंने भय से मुक्त होकर उस अभय स्वरूप अकाल-पुरख का ध्यान किया है उनके जीवन का समस्त (जन्म-मरण व यमादि का) भय वह समाप्त कर देता है।
ਜਿਨ ਸੇਵਿਆ ਜਿਨ ਸੇਵਿਆ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਜੀ ਤੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰੂਪਿ ਸਮਾਸੀ ॥ जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥ जिन्होंने निरंकार का चिन्तन किया, सेवा-भाव से उस में लीन हुए, वे तुम्हारे दु:खहर्ता रूप में ही विलीन हो गए।
ਸੇ ਧੰਨੁ ਸੇ ਧੰਨੁ ਜਿਨ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਜੀ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਤਿਨ ਬਲਿ ਜਾਸੀ ॥੩॥ से धंनु से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥ हे नानक ! जिन्होंने नारायण स्वरूप निरंकार का सिमरन किया, वे ही धन्य-धन्य हैं, मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ। ३
ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ਜੀ ਭਰੇ ਬਿਅੰਤ ਬੇਅੰਤਾ ॥ तेरी भगति तेरी भगति भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥ हे अनंत स्वरूप ! आपकी भक्ति के खजाने भक्तों के हृदय में अनंतानंत भरे हुए हैं।
ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਸਲਾਹਨਿ ਤੁਧੁ ਜੀ ਹਰਿ ਅਨਿਕ ਅਨੇਕ ਅਨੰਤਾ ॥ तेरे भगत तेरे भगत सलाहनि तुधु जी हरि अनिक अनेक अनंता ॥ आपके भक्त तीनों काल तेरी प्रशंसा के गीत गाते हैं कि हे परमेश्वर ! आप अनेकानेक व अनंत स्वरूप हैं।
ਤੇਰੀ ਅਨਿਕ ਤੇਰੀ ਅਨਿਕ ਕਰਹਿ ਹਰਿ ਪੂਜਾ ਜੀ ਤਪੁ ਤਾਪਹਿ ਜਪਹਿ ਬੇਅੰਤਾ ॥ तेरी अनिक तेरी अनिक करहि हरि पूजा जी तपु तापहि जपहि बेअंता ॥ संसार में आपकी नाना प्रकार से आराधना और जप-तपादि द्वारा साधना की जाती है।
ਤੇਰੇ ਅਨੇਕ ਤੇਰੇ ਅਨੇਕ ਪੜਹਿ ਬਹੁ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਜੀ ਕਰਿ ਕਿਰਿਆ ਖਟੁ ਕਰਮ ਕਰੰਤਾ ॥ तेरे अनेक तेरे अनेक पड़हि बहु सिम्रिति सासत जी करि किरिआ खटु करम करंता ॥ अनेकानेक ऋषि-मुनि व विद्वान कई तरह के शास्त्र, स्मृतियों का अध्ययन करके तथा षट्-कर्म, यज्ञादि धर्म कार्यों द्वारा आपका स्तुति-गान करते हैं।
ਸੇ ਭਗਤ ਸੇ ਭਗਤ ਭਲੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਜੀ ਜੋ ਭਾਵਹਿ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਭਗਵੰਤਾ ॥੪॥ से भगत से भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हरि भगवंता ॥४॥ हे नानक ! वे समस्त श्रद्धालु भक्त संसार में भले हैं जो निरंकार को अच्छे लगते हैं II ४ II
ਤੂੰ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਕਰਤਾ ਜੀ ਤੁਧੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥ तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥ हे अकाल पुरख ! आप अपरिमेय पारब्रह्म अनन्त स्वरूप हो, आपके समान अन्य कोई भी नहीं है।
ਤੂੰ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਏਕੋ ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੂੰ ਏਕੋ ਜੀ ਤੂੰ ਨਿਹਚਲੁ ਕਰਤਾ ਸੋਈ ॥ तूं जुगु जुगु एको सदा सदा तूं एको जी तूं निहचलु करता सोई ॥ युगों युगों से आप एक हो, सदा सर्वदा आप अद्वितीय स्वरूप हो और आप ही निश्चल रचयिता हो।
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਵਰਤੈ ਜੀ ਤੂੰ ਆਪੇ ਕਰਹਿ ਸੁ ਹੋਈ ॥ तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि सु होई ॥ जो आपको भला लगता है वही घटित होता है, जो आप स्वेच्छा से करते हो वही कार्य होता है।
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਭ ਉਪਾਈ ਜੀ ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਸਿਰਜਿ ਸਭ ਗੋਈ ॥ तुधु आपे स्रिसटि सभ उपाई जी तुधु आपे सिरजि सभ गोई ॥ आपने स्वयं ही इस सृष्टि की रचना की है और स्वयं ही रच कर उसका संहार भी करते हो।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਕਰਤੇ ਕੇ ਜੀ ਜੋ ਸਭਸੈ ਕਾ ਜਾਣੋਈ ॥੫॥੧॥ जनु नानकु गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥१॥ हे नानक ! मैं उस स्रष्टा प्रभु का गुणगान करता हूँ, जो समस्त सृष्टि का सृजक है अथवा जो समस्त जीवों के अन्तर्मन का ज्ञाता है II ५ II १ II
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥ आसा महला ४ ॥ राग आसा, चतुर्थ गुरु ॥
ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਸਚਿਆਰੁ ਮੈਡਾ ਸਾਂਈ ॥ तूं करता सचिआरु मैडा सांई ॥ हे निरंकार ! आप ही सृजनहार हो, सत्यस्वरूप हो और मेरे मालिक हो।
ਜੋ ਤਉ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਥੀਸੀ ਜੋ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਸੋਈ ਹਉ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो तउ भावै सोई थीसी जो तूं देहि सोई हउ पाई ॥१॥ रहाउ ॥ जो आपको भला लगता है वही होता है, जो आप देते हो वही मैं प्राप्त करता हूँ। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਭ ਤੇਰੀ ਤੂੰ ਸਭਨੀ ਧਿਆਇਆ ॥ सभ तेरी तूं सभनी धिआइआ ॥ सम्पूर्ण सृष्टि आपकी पैदा की हुई है, आपका सभी जीवों ने स्मरण किया है।
ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹਿ ਤਿਨਿ ਨਾਮ ਰਤਨੁ ਪਾਇਆ ॥ जिस नो क्रिपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥ किंतु जिन पर आपकी दया होती है, उन्होंने ही आपका नाम रूपी रत्न-पदार्थ प्राप्त किया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਲਾਧਾ ਮਨਮੁਖਿ ਗਵਾਇਆ ॥ गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥ यह नाम-रत्न श्रेष्ठ साधक पा जाते हैं और स्वेच्छाचारी मनुष्य इसे गंवा बैठते हैं l
ਤੁਧੁ ਆਪਿ ਵਿਛੋੜਿਆ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੧॥ तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥ आप स्वयं ही विच्छन्न करते हो और स्वयं ही सम्मिलित करते हो। ॥ १॥
ਤੂੰ ਦਰੀਆਉ ਸਭ ਤੁਝ ਹੀ ਮਾਹਿ ॥ तूं दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥ हे परमेश्वर ! आप जीवन रूपी नदीया हो, सारा प्रपंच आप में ही तरंग रूप है।
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਕੋਈ ਨਾਹਿ ॥ तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥ आपके अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤੇਰਾ ਖੇਲੁ ॥ जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥ सृष्टि के सभी छोटे-बड़े जीव आपका ही कौतुक है।
ਵਿਜੋਗਿ ਮਿਲਿ ਵਿਛੁੜਿਆ ਸੰਜੋਗੀ ਮੇਲੁ ॥੨॥ विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥ जिसकी नियति में ईश्वर से अलग होना लिखा है, वह अलग ही रहता है; और अन्य सभी आपकी इच्छा से एक हो जाते हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਤੂ ਜਾਣਾਇਹਿ ਸੋਈ ਜਨੁ ਜਾਣੈ ॥ जिस नो तू जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥ हे परमात्मा ! जिसे आप गुरु द्वारा ज्ञान प्रदान करते हो वही इस विधि को जान सकता है। फिर वही सदैव आपके गुणों का व्याख्यान करता है।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਸਦ ਹੀ ਆਖਿ ਵਖਾਣੈ ॥ हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥ फिर वही सदैव आपके गुणों का व्याख्यान करता है।
ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥ जिन्होंने उस अकाल पुरख का सिमरन किया है, उन्होंने आत्मिक सुखों की प्राप्ति की है।
ਸਹਜੇ ਹੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥੩॥ सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥ फिर वह परम पुरुष सरलता से ही प्रभु-नाम में समाहित हो जाता है॥ ३॥


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