Guru Granth Sahib Translation Project

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ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਪਰੀਤਿ ਧ੍ਰਿਗੁ ਸੁਖੀ ਨ ਦੀਸੈ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ माइआ मोह परीति ध्रिगु सुखी न दीसै कोइ ॥१॥ रहाउ ॥ मोह-माया की प्रीति को धिक्कार है। इससे कोई भी सुखी दिखाई नहीं देता ॥१॥ रहाउ॥
ਦਾਨਾ ਦਾਤਾ ਸੀਲਵੰਤੁ ਨਿਰਮਲੁ ਰੂਪੁ ਅਪਾਰੁ ॥ दाना दाता सीलवंतु निरमलु रूपु अपारु ॥ वह परमेश्वर सर्वज्ञ, महान दाता, शीलवान, पवित्र, सुन्दर तथा बेअंत है।
ਸਖਾ ਸਹਾਈ ਅਤਿ ਵਡਾ ਊਚਾ ਵਡਾ ਅਪਾਰੁ ॥ सखा सहाई अति वडा ऊचा वडा अपारु ॥ वह प्राणी का साथी, सहायक, महान्, अनंत, विशाल एवं सर्वोच्च है।
ਬਾਲਕੁ ਬਿਰਧਿ ਨ ਜਾਣੀਐ ਨਿਹਚਲੁ ਤਿਸੁ ਦਰਵਾਰੁ ॥ बालकु बिरधि न जाणीऐ निहचलु तिसु दरवारु ॥ परमात्मा को न बालक अथवा न ही वृद्ध समझना चाहिए, उस परमात्मा का दरबार सदैव स्थिर है।
ਜੋ ਮੰਗੀਐ ਸੋਈ ਪਾਈਐ ਨਿਧਾਰਾ ਆਧਾਰੁ ॥੨॥ जो मंगीऐ सोई पाईऐ निधारा आधारु ॥२॥ हम जो कुछ भी परमात्मा के समक्ष श्रद्धापूर्वक याचना करते हैं, वह उससे प्राप्त कर लेते हैं। सर्वगुण सम्पन्न परमात्मा आश्रयहीनों का आश्रय है ॥२॥
ਜਿਸੁ ਪੇਖਤ ਕਿਲਵਿਖ ਹਿਰਹਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਹੋਵੈ ਸਾਂਤਿ ॥ जिसु पेखत किलविख हिरहि मनि तनि होवै सांति ॥ जिस प्रभु के दर्शन-मात्र से समस्त पाप दूर हो जाते हैं, मन एवं देह शीतल हो जाते हैं
ਇਕ ਮਨਿ ਏਕੁ ਧਿਆਈਐ ਮਨ ਕੀ ਲਾਹਿ ਭਰਾਂਤਿ ॥ इक मनि एकु धिआईऐ मन की लाहि भरांति ॥ तथा मन की समस्त भ्रांतियाँ मिट जाती हैं, उस प्रभु को एकाग्रचित होकर स्मरण करना चाहिए।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨੁ ਨਵਤਨੁ ਸਦਾ ਪੂਰਨ ਜਾ ਕੀ ਦਾਤਿ ॥ गुण निधानु नवतनु सदा पूरन जा की दाति ॥ वह परमेश्वर गुणों का भण्डार है, वह सदैव निरोग एवं दानशील है। उसकी अनुकंपा अपरम्पार है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਆਰਾਧੀਐ ਦਿਨੁ ਵਿਸਰਹੁ ਨਹੀ ਰਾਤਿ ॥੩॥ सदा सदा आराधीऐ दिनु विसरहु नही राति ॥३॥ दिन एवं रात उसे कभी भी विस्मृत मत करो, सदैव उस परब्रह्म की आराधना करते रहनी चाहिए ॥३॥
ਜਿਨ ਕਉ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਤਿਨ ਕਾ ਸਖਾ ਗੋਵਿੰਦੁ ॥ जिन कउ पूरबि लिखिआ तिन का सखा गोविंदु ॥ जिसके माथे पर पूर्व से ही शुभ कर्मों का भाग्य लिखा है, गोविन्द उसका घनिष्ठ मित्र बना है।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਅਰਪੀ ਸਭੋ ਸਗਲ ਵਾਰੀਐ ਇਹ ਜਿੰਦੁ ॥ तनु मनु धनु अरपी सभो सगल वारीऐ इह जिंदु ॥ उसे मैं अपना तन, मन, धन सब कुछ समर्पित करता हूँ और यह जीवन भी उस परमेश्वर पर न्योछावर करता हूँ।
ਦੇਖੈ ਸੁਣੈ ਹਦੂਰਿ ਸਦ ਘਟਿ ਘਟਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਰਵਿੰਦੁ ॥ देखै सुणै हदूरि सद घटि घटि ब्रहमु रविंदु ॥ सर्वव्यापक परमात्मा नित्य ही जीवों को अपने समक्ष देखता एवं सुनता है। वह घट-घट प्रत्येक हृदय में व्याप्त है।
ਅਕਿਰਤਘਣਾ ਨੋ ਪਾਲਦਾ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਖਸਿੰਦੁ ॥੪॥੧੩॥੮੩॥ अकिरतघणा नो पालदा प्रभ नानक सद बखसिंदु ॥४॥१३॥८३॥ परमात्मा इतना दयालु-कृपालु है कि वह कृतघ्नों का भी पालन-पोषण करता है। हे नानक ! वह परमात्मा सदैव क्षमाशील है ॥४ ॥१३ ॥८३ ॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सिरीरागु महला ५ ॥ श्रीरागु महला ५ ॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਧਨੁ ਜਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਦੀਆ ਰਖਿਆ ਸਹਜਿ ਸਵਾਰਿ ॥ मनु तनु धनु जिनि प्रभि दीआ रखिआ सहजि सवारि ॥ जिस प्रभु ने यह मन, तन व धन इत्यादि सब कुछ दिया है तथा हमें सजा संवार कर रखा हुआ है।
ਸਰਬ ਕਲਾ ਕਰਿ ਥਾਪਿਆ ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਅਪਾਰ ॥ सरब कला करि थापिआ अंतरि जोति अपार ॥ उस प्रभु ने सर्वकला सम्पूर्ण शक्तियों द्वारा शरीर की रचना की है और अन्तर्मन में अपनी ज्योति प्रकट की है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰੀਐ ਅੰਤਰਿ ਰਖੁ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥੧॥ सदा सदा प्रभु सिमरीऐ अंतरि रखु उर धारि ॥१॥ उस प्रभु की सदा आराधना करनी चाहिए तथा हृदय में बसाकर रखें॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ मेरे मन हरि बिनु अवरु न कोइ ॥ हे मेरे मन ! ईश्वर के बिना अन्य कोई समर्थ नहीं।
ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਈ ਸਦਾ ਰਹੁ ਦੂਖੁ ਨ ਵਿਆਪੈ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रभ सरणाई सदा रहु दूखु न विआपै कोइ ॥१॥ रहाउ ॥ सदैव उस प्रभु की शरण में रहने से तुझे कोई विपत्ति नहीं आएगी॥ १॥ रहाउ ॥
ਰਤਨ ਪਦਾਰਥ ਮਾਣਕਾ ਸੁਇਨਾ ਰੁਪਾ ਖਾਕੁ ॥ रतन पदारथ माणका सुइना रुपा खाकु ॥ स्वर्ण, चांदी, माणिक्य, हीरे-मोती रत्न पदार्थ समस्त मिट्टी समान हैं।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਬੰਧਪਾ ਕੂੜੇ ਸਭੇ ਸਾਕ ॥ मात पिता सुत बंधपा कूड़े सभे साक ॥ माता-पिता, सगे-संबंधी, रिश्तेदार समस्त झूठे रिश्तेदार हैं।
ਜਿਨਿ ਕੀਤਾ ਤਿਸਹਿ ਨ ਜਾਣਈ ਮਨਮੁਖ ਪਸੁ ਨਾਪਾਕ ॥੨॥ जिनि कीता तिसहि न जाणई मनमुख पसु नापाक ॥२॥ जिस प्रभु ने सब कुछ उत्पन्न किया है, उसे स्वेच्छाचारी एवं अपवित्र पशु समान जीव स्मरण नहीं करता॥२॥
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਤਿਸ ਨੋ ਜਾਣੈ ਦੂਰਿ ॥ अंतरि बाहरि रवि रहिआ तिस नो जाणै दूरि ॥ परमेश्वर शरीर के अन्दर एवं बाहर परिपूर्ण है, वह कण-कण में व्याप्त है लेकिन उसे मनुष्य दूर समझता है।
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਲਾਗੀ ਰਚਿ ਰਹਿਆ ਅੰਤਰਿ ਹਉਮੈ ਕੂਰਿ ॥ त्रिसना लागी रचि रहिआ अंतरि हउमै कूरि ॥ जीव के अन्तर्मन में भोग विलास की तृष्णा है, वह विषय-विकारों में लिप्त है और उसका हृदय अहंकार एवं झूठ में भरा हुआ है।
ਭਗਤੀ ਨਾਮ ਵਿਹੂਣਿਆ ਆਵਹਿ ਵੰਞਹਿ ਪੂਰ ॥੩॥ भगती नाम विहूणिआ आवहि वंञहि पूर ॥३॥ प्रभु की भक्ति एवं नाम-सिमरन से वंचित होने के कारण प्राणियों के समुदाय योनियों में फँसकर आते जाते रहते हैं। ३॥
ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਪ੍ਰਭੁ ਕਰਣਹਾਰ ਜੀਅ ਜੰਤ ਕਰਿ ਦਇਆ ॥ राखि लेहु प्रभु करणहार जीअ जंत करि दइआ ॥ हे करुणा निधान पारब्रह्म ! इन जीव-जन्तुओं पर कृपा-दृष्टि करके उनकी रक्षा करो।
ਬਿਨੁ ਪ੍ਰਭ ਕੋਇ ਨ ਰਖਨਹਾਰੁ ਮਹਾ ਬਿਕਟ ਜਮ ਭਇਆ ॥ बिनु प्रभ कोइ न रखनहारु महा बिकट जम भइआ ॥ यमराज बड़ा विकट हो गया है। प्रभु के बिना अन्य कोई रखवाला नहीं है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰਉ ਕਰਿ ਅਪੁਨੀ ਹਰਿ ਮਇਆ ॥੪॥੧੪॥੮੪॥ नानक नामु न वीसरउ करि अपुनी हरि मइआ ॥४॥१४॥८४॥ नानक जी का कथन है कि हे प्रभु! अपनी कृपा करो तांकि मैं कभी भी तेरा नाम न भूलूं ॥४॥१४॥८४ ॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सिरीरागु महला ५ ॥ श्रीरागु महला ५ ॥
ਮੇਰਾ ਤਨੁ ਅਰੁ ਧਨੁ ਮੇਰਾ ਰਾਜ ਰੂਪ ਮੈ ਦੇਸੁ ॥ मेरा तनु अरु धनु मेरा राज रूप मै देसु ॥ मनुष्य गर्व से कहता है कि यह तन-मन एवं धन मेरा है, इस देश पर शासन मेरा है।
ਸੁਤ ਦਾਰਾ ਬਨਿਤਾ ਅਨੇਕ ਬਹੁਤੁ ਰੰਗ ਅਰੁ ਵੇਸ ॥ सुत दारा बनिता अनेक बहुतु रंग अरु वेस ॥ मैं सुन्दर स्वरूप वाला हूँ तथा मेरे पुत्र हैं, स्त्री है, पुत्री है और अनेकानेक रंगों के भेष मैं ही धारण कर सकता हूँ।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਨ ਵਸਈ ਕਾਰਜਿ ਕਿਤੈ ਨ ਲੇਖਿ ॥੧॥ हरि नामु रिदै न वसई कारजि कितै न लेखि ॥१॥ हे भाई ! जिस मानव के हृदय में प्रभु नाम का निवास नहीं है, उसके समस्त किए काम गणना में नहीं आते ॥ १ ॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥ मेरे मन हरि हरि नामु धिआइ ॥ हे मेरे मन ! हरि-परमात्मा के नाम की आराधना करो
ਕਰਿ ਸੰਗਤਿ ਨਿਤ ਸਾਧ ਕੀ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ करि संगति नित साध की गुर चरणी चितु लाइ ॥१॥ रहाउ ॥ प्रतिदिन साधु-संतों की संगति में रहने का प्रयास करो और गुरु के चरणों में अपने चित्त को लगाओ ॥१॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਧਿਆਈਐ ਮਸਤਕਿ ਹੋਵੈ ਭਾਗੁ ॥ नामु निधानु धिआईऐ मसतकि होवै भागु ॥ हरि-नाम, जो सर्व प्रकार की निधि है, उसका चिन्तन तभी हो सकता है, यदि मनुष्य के माथे पर शुभ भाग्य अंकित हो।
ਕਾਰਜ ਸਭਿ ਸਵਾਰੀਅਹਿ ਗੁਰ ਕੀ ਚਰਣੀ ਲਾਗੁ ॥ कारज सभि सवारीअहि गुर की चरणी लागु ॥ गुरु के चरणों में लगने से समस्त कार्य संवर जाते हैं।
ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ਭ੍ਰਮੁ ਕਟੀਐ ਨਾ ਆਵੈ ਨਾ ਜਾਗੁ ॥੨॥ हउमै रोगु भ्रमु कटीऐ ना आवै ना जागु ॥२॥ इस प्रकार अहंकार के रोग एवं शंकाएँ निवृत्त हो जाती हैं और प्राणी का आवागमन कट जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।॥२॥
ਕਰਿ ਸੰਗਤਿ ਤੂ ਸਾਧ ਕੀ ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਨਾਉ ॥ करि संगति तू साध की अठसठि तीरथ नाउ ॥ इसलिए हे जीव ! तू साधु की संगति कर, जो अठसठ तीथों के स्नान के समान अति पावन है।
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਣ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰੇ ਸਾਚਾ ਏਹੁ ਸੁਆਉ ॥ जीउ प्राण मनु तनु हरे साचा एहु सुआउ ॥ नाम-सिमरन से तुम्हारी आत्मा, प्राण, मन एवं देहि प्रफुल्लित हो जाएँगे और यही जीवन का सत्य मनोरथ है।


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